मेरी तुम्हारी बात कोइ फ़साना तो हे नहि,
हे भी अगर तो सबको बताना तो हे नहि,
तुम दो फ़रेब् और मे समजु हुन्नर उसको,
इतना भी सादगी क जमाना तो हे नहि !
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तुजसे शिक्वे थे कई अब कोइ फ़रियाद् नहि,
तुजसे मिलता था कभी वो भी मुज्हे याद नहि !
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लोग कहते हे हमे आदत हे मुस्कुराने की
वो क्या जाने ये भी एक अदा हे गम छुपाने की !!!
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किस लिये मुजसे खफ़ा हे ये बताया भी नहि,
उसने देखा भी और बुलाया भी नहि,
उम्र की धूप मे जल जाओगे ख्वाबोके बदन,
रन्ज वो पेड हे जिसक कोइ साया भी नहि !
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